बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-3 समाजशास्त्र बीए सेमेस्टर-3 समाजशास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-3 समाजशास्त्र
प्रश्न- भारत में वैश्वीकरण की कौन-कौन सी चुनौतियाँ हैं? वर्णन कीजिए।
उत्तर -
भारत में वैश्वीकरण की चुनौतियाँ
(Challenges of Globalization in India)
जैसे-जैसे विश्व में आर्थिक एवं व्यापारिक क्षेत्र का फैलाव होता है वैसे-वैसे क्षेत्रों में उदारीकरण की प्रक्रिया को भी बढ़ावा मिलता है। इसके विपरीत जब विभिन्न देशों में व्यापार को बढ़ावा देने के लिए, ये देश करों एवं अन्य मामलों में अधिक सुविधाएँ देने लगते हैं तो वैश्वीकरण की प्रक्रिया को अधिक बल मिलता है। इस प्रकार स्पष्ट है कि उदारीकरण वह विस्तृत एवं व्यापक प्रक्रिया है जो विश्व के विभिन्न देशों के मध्य व्यापारिक एवं आर्थिक सम्बन्धों का अधिक विस्तार करने की दृष्टि से विश्व के देशों को परस्पर ऐसी सुविधाएँ प्रदान करने के लिए प्रेरित करती है ताकि मुक्त विश्व व्यापार एवं बेहतर अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक सम्बन्धों के लक्ष्य तक पहुँचा जा सके। वैश्वीकरण की प्रक्रिया विश्व की अर्थव्यवस्थाओं को एक साथ जोड़ रही है। अर्थव्यवस्थाओं में एकीकरण की इस प्रक्रिया को उदारीकरण ओर निजीकरण, ने आसान बनाया है। इससे अर्थव्यवस्था पर सरकारी नियंत्रण कम होने के साथ-साथ इसमें उदारता भी आई है। उदारीकरण की नीति अर्थव्यवस्था की कार्यकुशलता को बढ़ाती है। निजी उद्यम सार्वजनिक उद्यमों के मुकाबले अधिक परिणामोन्मुखी होते हैं। इन सब उपलब्धियों के बावजूद वैश्वीकरण और उदारीकरण की अर्थव्यवस्था के सामने अनेक चुनौतियाँ हैं। यहाँ कुछ चुनौतियाँ इस प्रकार हैं -
1. बेरोजगारी में वृद्धि - किसी भी देश में घरेलू उद्योग व रोज़गार के बीच एक घनिष्ठ सम्बन्ध होता है। अगर देश में औद्योगिक इकाइयों की संख्या बढ़ेगी तो निश्चय ही अधिक लोगों को रोजगार मिलेगा। ठीक इसी प्रकार इसका उल्टा भी पूरी तरह से है कि उद्योग-धन्धे कम होंगे, तो रोजगार के अवसर भी घटेंगे और गरीबी में भी इजाफा होगा। क्योंकि गरीबी और बेरोजगारी में सीधा सम्बन्ध है। भारत में लगभग 27.5% लोग गरीबी की रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहे हैं। अर्थात् उनके पास जीने के लिये आवश्यक मूलभूत सुविधाओं का नितान्त अभाव है। इस प्रकार आर्थिक सुधार व उदारीकरण की प्रक्रिया ने हमें निरन्तर गरीब और बेरोजगार ही बनाया है।
2. बाजार में आयातित कृषि उत्पादों का अम्बार - वैश्वीकरण के दूसरे दौर की चुनौतियों में 1 अप्रैल 2001 को विश्व व्यापार संगठन से किये गये वायदे के अनुसार भारत सरकार सभी सूचीबद्ध उत्पादों के आयात से मात्रात्मक प्रतिबन्ध हटा चुका है। इसे नई आयात-निर्यात नीति के तहत ही किया गया है। मात्रात्मक प्रतिबन्धों को लेकर सबसे ज्यादा चिन्ता किसानों को रही है। पिछले पूरे साल किसान यह शिकायत करते रहे हैं कि आयात पर लगे मात्रात्मक प्रतिबन्धों के हट जाने से बाजार में आयातित सस्ते कृषि उत्पाद छा गए हैं। इसके कारण उन्हें अपनी पैदावार का इतना दाम भी नहीं मिल पा रहा है कि खेती का खर्च निकल सके। देश में किसानों की संख्या बहुत अधिक है और इन कारणों से उनकी आर्थिक व राजनीतिक ताकत को पूरी तरह से समाप्त करने की कोशिश की गयी है।
3. विनिमय दर में निरन्तर गिरावट - भारत में वैश्वीकरण की नीति के तहत अनेक प्रकार के सुधार आर्थिक नीति में किए गए परन्तु अभी भी मजदूर कानून में कोई ऐसा मूलभूत परिवर्तन नहीं हुआ है। जब तक कानून और आर्थिक सुधार के लिए उठाए गए कदम घरेलू उद्योगों के हित में नहीं होंगे देश की उन्नति नहीं हो सकती। आज देश का निर्माण उद्योग भी मंदी की स्थिति से गुजर रहा है- निर्माण उद्योग में मंदी का सीधा प्रभाव उपभोक्ता माँग पर पड़ता है। इससे मध्यम आय वर्ग में चिन्ता दिखाई देने लगती है। इसलिए स्पष्ट है कि उदारीकरण की नीति का विकसित देशों को तो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष लाभ हो * सकता है, परन्तु भारत जैसे विकासशील देश में तो अभी तक कोई सकारात्मक प्रभाव नहीं आया है।
4. बाजार में शक्तियों और औद्योगिक विकास के मार्ग में आने वाली बाधाएँ - इस उदारीकरण के तहत खुली अर्थव्यवस्था में जहाँ आर्थिक गतिविधियों पर प्रतिबन्ध नहीं होता वहाँ पर नीतियों का क्रियान्वयन ज्यादा आसान होता है। क्योंकि यह माँग पर प्रतिबन्ध और पूर्ति पर आधारित मुनाफे के द्वारा संचालित होती है। लेकिन फिर भी सरकार का दायित्व है कि वह बाजार शक्तियों और औद्योगिक विकास के मार्ग में आने वाली बाधाओं को दूर करे। भारत सरकार 1991 में तैयार की गई औद्योगिक नीति, कोटा, परमिट लाइसेन्स को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने एवं उत्पादन के मार्ग में आने वाले अवरोधों को पूरी ईमानदारी से समाप्त करने में सतत् प्रयत्नशील है। सरकार सकल घरेलू उत्पादन के सम्बन्ध में कुल राजकोषीय घाटा कम करे, बाह्य खाते में सन्तुलन की स्थिति को सुधारे तथा मुद्रास्फीति को कम करे।
5. वैश्वीकरण का दुष्परिणाम - वैश्वीकरण की नीति अपनाने के साथ ही अनेक प्रकार के आर्थिक कार्यक्रम शुरू किए गए। वैश्वीकरण की नीति अपनाते समय यह मान लिया कि देश में व्याप्त प्रत्येक समस्या का समाधान केवल वैश्वीकरण द्वारा ही सम्भव है। लेकिन आज लगभग सोलह वर्षों के बाद जब हम देखते हैं तो पाते हैं कि वास्तव में वैश्वीकरण के उद्देश्य को ध्यान में रखकर शुरू किए गए आर्थिक सुधार कार्यक्रमों का कोई प्रभाव हमारी अर्थव्यवस्था पर नहीं पड़ा है। यद्यपि इन वर्षों में भारत ने सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में लाभ कमाया है, परन्तु ऐसे अनेक क्षेत्र हैं, जिन पर वैश्वीकरण की नीति का दुष्प्रभाव पड़ा। इसी नीति के तहत बहुत से उद्योगों में कर्मचारियों की छँटनी हुई, जिसके कारण जिस धनराशि को विकास में खर्च होना चाहिये, वह राशि छँटनी किए गए कर्मचारियों व मजदूरों को क्षतिपूर्ति करने में खर्च हो गई। वैश्वीकरण के अन्तर्गत हमने आयात को भी उदार बनाया, जिसके कारण हमारे छोटे घरेलू उद्योगों का अस्तित्व ही खतरे में पड़ चुका है और अभी तक देश में ऐसी सशक्त व्यवस्था भी नहीं है जो कि हमारे इन छोटे घरेलू उद्योगों को विदेशी सामानों के आयात की स्पर्धा से बचा सके।
6. आयात में वृद्धि निर्यात में कमी - आयात में वृद्धि होने का सीधा सा अर्थ है कि हमने दूसरे देशों को अधिक भुगतान किया है। दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि आयात में वृद्धि होने से अर्थात् ज्यादा विदेशी सामानों के भारतीय बाजारों में आ जाने से घरेलू उद्योग-धन्धे प्रभावित हुए हैं। विदेशी माल की उच्च गुणवत्ता तथा सुविधाजनक दाम के कारण आम आदमी ने विदेशी वस्तुओं को प्राथमिकता दी, इससे भी घरेलू उद्योग प्रभावित हुआ।
7. केन्द्र और राज्य सरकारें दिवालियापन की ओर - यह निश्चित रूप से स्पष्ट है कि भारत के द्वितीय चरण के आर्थिक सुधार कार्यक्रम, पहले चरण के कार्यक्रम की तुलना में अधिक जटिल व कष्टप्रद हैं। प्रथम चरण के सुधार कार्यक्रम के तहत आर्थिक नियमों में बदलाव लाए गए। वित्तीय क्षेत्र, मुद्रा, बैंकिंग, व्यवसाय, वाणिज्य, विनिमय दर, विदेशी निवेश, उद्योग आदि से जुड़े नियमों में बदलाव लाया गया। अब वैश्वीकरण के द्वितीय चरण में विधायी परिवर्तनों की आवश्यकता होगी, जो अधिक कष्टप्रद होगी। यह कहा जा सकता है कि द्वितीय दौर के दौरान आर्थिक व वित्तीय नियमों की जगह आर्थिक व वित्तीय अधिनियमों में परिवर्तन का दौर होगा। शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे बुनियादी क्षेत्र भी आर्थिक तंगी में हैं। राज्य कर्मचारियों को देने के लिए वेतन तक नहीं है। विदेशों में पूँजी का पलायन बढ़ता जा रहा है। राष्ट्रीय बजट का लगभग 40% हिस्सा कर्जे की अदायगी में खर्च हो रहा है।
8. विदेशी कर्ज का बोझ बढ़ा - भारत पर विदेशी ऋण भार में वृद्धि का सिलसिला जारी है। भारत में कुल विदेशी ऋण के संबंध में अद्यतन आँकड़े वित्त मंत्रालय द्वारा 31 मार्च, 2016 को जारी किए गए। इन आँकड़ों के अनुसार दिसम्बर, 2015 के अन्त में देश पर कुल विदेशी ऋण 480.2 अरब डॉलर के हो गए थे। इससे पूर्व मार्च, 2015 के अन्त में यह कर्ज 475.3 अरब डॉलर के तथा सितम्बर, 2015 के अंत में यह 483.2 अरब डॉलर के थे। इस प्रकार विदेशी ऋण भार में 4.9 अरब डॉलर की . वृद्धि मार्च - दिसम्बर, 2015 के दौरान हुई। इन सबके बीच देश का आम आदमी यही सोचता है कि क्या वह भी खुशहाल हुआ है? देश के प्रबुद्ध वर्ग यह सोचते हैं कि आर्थिक सुधारों के तहत बहुराष्ट्रीय कम्पनियों व विकसित एवं विकासशील राष्ट्रों के उद्यमियों के लिए भारतीय बाजार को जिस तरह फूलों की सेज बनाया गया है उससे देश मात्र कच्चे माल का उत्पादक ही न रह जाये।
9. राजस्व की हानि और विदेशी सामान की भरमार - वैश्वीकरण की नीति के तहत सीमा शुल्क में कमी की गई। इसके दो प्रभाव भारतीय अर्थव्यवस्था पर पड़े - पहला यह कि कम सीमा शुल्क होने के कारण सरकार को सीमा शुल्क से होने वाली आय में कमी हुई और दूसरा प्रभाव यह हुआ कि विदेशी सामान अधिक मात्रा में और कम मूल्य पर हमारे बाजारों में पहुँचने लगा। इससे घरेलू उत्पादकों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ा क्योंकि भारत में घटिया तकनीक व पूँजी की कमी के साथ-साथ घटिया ढाँचा होने के कारण उत्पादन लागत काफी अधिक है। उदाहरण चीनी सामानों से भारतीय बाजार का पट जाना। चीन ने अपने उत्पादों को कम दाम पर उतारा। भारतीय उत्पाद उनके सामने टिक नहीं पाये। चीन में निर्मित वस्तुओं के कारण जो स्थिति बनी, उसके बहुत गम्भीर प्रभाव पड़े।
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- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन का क्या अर्थ है? सामाजिक परिवर्तन के प्रमुख कारकों का उल्लेख कीजिए।
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- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के जैवकीय कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के जनसंख्यात्मक कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के राजनैतिक तथा सेना सम्बन्धी कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में महापुरुषों की भूमिका स्पष्ट कीजिए।
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- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के आर्थिक कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के विचाराधारा सम्बन्धी कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के सांस्कृतिक कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के मनोवैज्ञानिक कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन की परिभाषा बताते हुए इसकी विशेषताएं लिखिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन की विशेषतायें बताइये।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन की प्रमुख प्रक्रियायें बताइये तथा सामाजिक परिवर्तन के कारणों (कारकों) का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में जैविकीय कारकों की भूमिका का मूल्यांकन कीजिए।
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- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के प्राकृतिक कारकों का वर्णन कीजिए। सामाजिक परिवर्तन के जनसंख्यात्मक कारकों व प्रणिशास्त्रीय कारकों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के जनसंख्यात्मक कारकों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- प्राणिशास्त्रीय कारक और सामाजिक परिवर्तन की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में जनसंख्यात्मक कारक के महत्व की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के आर्थिक कारक बताइये तथा आर्थिक कारकों के आधार पर मार्क्स के विचार प्रकट कीजिए?
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में आर्थिक कारकों से सम्बन्धित अन्य कारणों को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- आर्थिक कारकों पर मार्क्स के विचार प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में प्रौद्योगिकीय कारकों की भूमिका की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के सांस्कृतिक कारकों का वर्णन कीजिए। सांस्कृतिक विलम्बना या पश्चायन (Cultural Lag) के सिद्धान्त का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सांस्कृतिक विलम्बना या पश्चायन का सिद्धान्त प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक संरचना के विकास में सहायक तथा अवरोधक तत्त्वों को वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक संरचना के विकास में असहायक तत्त्वों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- केन्द्र एवं परिरेखा के मध्य सम्बन्ध की विवेचना कीजिए।
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- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के विभिन्न स्वरूपों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में सूचना प्रौद्योगिकी की क्या भूमिका है?
- प्रश्न- निम्नलिखित पुस्तकों के लेखकों के नाम लिखिए- (अ) आधुनिक भारत में सामाजिक परिवर्तन (ब) समाज
- प्रश्न- सूचना प्रौद्योगिकी एवं विकास के मध्य सम्बन्ध की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सूचना तंत्र क्रान्ति के सामाजिक परिणामों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- जैविकीय कारक का अर्थ बताइये।
- प्रश्न- सामाजिक तथा सांस्कृतिक परिवर्तन में अन्तर बताइए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के 'प्रौद्योगिकीय कारक पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- जनसंचार के प्रमुख माध्यम बताइये।
- प्रश्न- सूचना प्रौद्योगिकी की सामाजिक परिवर्तन में भूमिका बताइये।
- प्रश्न- सूचना प्रौद्योगिकी क्या है?
- प्रश्न- सामाजिक उद्विकास से आप क्या समझते हैं? सामाजिक उद्विकास के विभिन्न स्तरों का वर्णन कीजिए।
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- प्रश्न- सामाजिक प्रगति के मापदण्ड क्या हैं?
- प्रश्न- निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
- प्रश्न- क्रान्ति से आप क्या समझते हैं? क्रान्ति के कारण तथा परिणामों / दुष्परिणामों की विवेचना कीजिए |
- प्रश्न- सामाजिक उद्विकास एवं प्रगति में अन्तर बताइये।
- प्रश्न- सामाजिक उद्विकास की अवधारणा की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- विकास के उपागम बताइए।
- प्रश्न- भारतीय समाज मे विकास की सतत् प्रक्रिया पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
- प्रश्न- मानव विकास क्या है?
- प्रश्न- सतत् विकास क्या है?
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- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के रेखीय सिद्धान्त का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- वेबलन के सामाजिक परिवर्तन के सिद्धान्त की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- मार्क्स के सामाजिक परिवर्तन के सिद्धान्त का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन क्या है? सामाजिक परिवर्तन के चक्रीय तथा रेखीय सिद्धान्तों में अन्तर स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- सांस्कृतिक विलम्बना के सिद्धान्त की समीक्षा कीजिये।
- प्रश्न- सांस्कृतिक विलम्बना के सिद्धान्त की आलोचना कीजिए।
- प्रश्न- अभिजात वर्ग के परिभ्रमण की अवधारणा क्या है?
- प्रश्न- विलफ्रेडे परेटो द्वारा सामाजिक परिवर्तन के चक्रीय सिद्धान्त की विवेचना कीजिए।
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- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन का सोरोकिन का सिद्धान्त एवं उसके प्रमुख आधारों का वर्णन कीजिए।
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- प्रश्न- हरबर्ट स्पेन्सर का प्राकृतिक प्रवरण का सिद्धान्त क्या है?
- प्रश्न- संस्कृतिकरण का अर्थ बताइये तथा संस्कृतिकरण में सहायक अवस्थाओं का वर्गीकरण कीजिए व संस्कृतिकरण की प्रक्रिया का वर्णन कीजिए।
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- प्रश्न- भारत में संस्कृतिकरण के कारण होने वाले परिवर्तनों के विषय में बताइये।
- प्रश्न- संस्कृतिकरण की संकल्पना के दोष बताइये।
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- प्रश्न- पश्चिमीकरण के लक्षण व परिणाम बताइये।
- प्रश्न- पश्चिमीकरण ने भारतीय ग्रामीण समाज के किन क्षेत्रों को प्रभावित किया है?
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- प्रश्न- संस्कृतिकरण में सहायक कारक बताइये।
- प्रश्न- समकालीन युग में संस्कृतिकरण की प्रक्रिया का स्वरूप स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- पश्चिमीकरण सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रिया के रूप में स्पष्ट कीजिए।
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- प्रश्न- अन्य क्षेत्रों में होने वाले परिवर्तनों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- आधुनिकीकरण के सम्बन्ध में विभिन्न समाजशास्त्रियों के विचार प्रकट कीजिए।
- प्रश्न- भारत में आधुनिकीकरण के मार्ग में आने वाली प्रमुख बाधाओं की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- आधुनिकीकरण को परिभाषित करते हुए विभिन्न विद्वानों के अनुसार आधुनिकीकरण के तत्वों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- डा. एम. एन. श्रीनिवास के अनुसार आधुनिकीकरण के तत्वों को बताइए।
- प्रश्न- डेनियल लर्नर के अनुसार आधुनिकीकरण की विशेषताओं को बताइए।
- प्रश्न- आइजनस्टैड के अनुसार, आधुनिकीकरण के तत्वों को समझाइये।
- प्रश्न- डा. योगेन्द्र सिंह के अनुसार आधुनिकीकरण के तत्वों को समझाइए।
- प्रश्न- ए. आर. देसाई के अनुसार आधुनिकीकरण के तत्वों को व्यक्त कीजिए।
- प्रश्न- आधुनिकीकरण का अर्थ तथा परिभाषा बताइये? भारत में आधुनिकीकरण के लक्षण बताइये।
- प्रश्न- आधुनिकीकरण के प्रमुख लक्षण बताइये।
- प्रश्न- भारतीय समाज पर आधुनिकीकरण के प्रभाव की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- लौकिकीकरण का अर्थ, परिभाषा व तत्व बताइये। लौकिकीकरण के कारण तथा प्रभावों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- लौकिकीकरण के प्रमुख कारण बताइये।
- प्रश्न- धर्मनिरपेक्षता क्या है? धर्मनिरपेक्षता के मुख्य कारकों का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- वैश्वीकरण क्या है? वैश्वीकरण की सामाजिक सांस्कृतिक प्रतिक्रिया की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- भारत पर वैश्वीकरण और उदारीकरण के सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक व्यवस्था पर प्रभावों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत में वैश्वीकरण की कौन-कौन सी चुनौतियाँ हैं? वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित शीर्षकों पर टिप्पणी लिखिये - 1. वैश्वीकरण और कल्याणकारी राज्य, 2. वैश्वीकरण पर तर्क-वितर्क, 3. वैश्वीकरण की विशेषताएँ।
- प्रश्न- निम्नलिखित शीर्षकों पर टिप्पणी लिखिये - 1. संकीर्णता / संकीर्णीकरण / स्थानीयकरण 2. सार्वभौमिकरण।
- प्रश्न- संस्कृतिकरण के कारकों का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- भारत में आधुनिकीकरण के किन्हीं दो दुष्परिणामों की विवचेना कीजिए।
- प्रश्न- आधुनिकता एवं आधुनिकीकरण में अन्तर बताइए।
- प्रश्न- एक प्रक्रिया के रूप में आधुनिकीकरण की विशेषताएँ लिखिए।
- प्रश्न- आधुनिकीकरण की हालवर्न तथा पाई की परिभाषा दीजिए।
- प्रश्न- भारत में आधुनिकीकरण की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- भारत में आधुनिकीकरण के दुष्परिणाम बताइये।
- प्रश्न- सामाजिक आन्दोलन से आप क्या समझते हैं? सामाजिक आन्दोलन का अध्ययन किस-किस प्रकार से किया जा सकता है?
- प्रश्न- सामाजिक आन्दोलन का अध्ययन किस-किस प्रकार से किया जा सकता है?
- प्रश्न- सामाजिक आन्दोलन के गुणों की व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक आन्दोलन के सामाजिक आधार की विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक आन्दोलन को परिभाषित कीजिये। भारत मे सामाजिक आन्दोलन के कारणों एवं परिणामों का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- "सामाजिक आन्दोलन और सामूहिक व्यवहार" के सम्बन्धों को समझाइये |
- प्रश्न- लोकतन्त्र में सामाजिक आन्दोलन की भूमिका को स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक आन्दोलनों का एक उपयुक्त वर्गीकरण प्रस्तुत करिये। इसके लिये भारत में हुए समकालीन आन्दोलनों के उदाहरण दीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक आन्दोलन के तत्व कौन-कौन से हैं?
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- प्रश्न- सामाजिक आन्दोलन के उत्तरदायी कारणों पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- सामाजिक आन्दोलन के विभिन्न सिद्धान्तों का सविस्तार वर्णन कीजिए।
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- प्रश्न- सर्वोदय का प्रारम्भ कब से हुआ?
- प्रश्न- सर्वोदय के प्रमुख तत्त्व क्या है?
- प्रश्न- भारत में नक्सली आन्दोलन का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- भारत में नक्सली आन्दोलन कब प्रारम्भ हुआ? इसके स्वरूपों का वर्णन कीजिए।
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- प्रश्न- नक्सली आन्दोलन की विचारधारा कैसी है?
- प्रश्न- नक्सली आन्दोलन का नवीन प्रेरणा के स्रोत बताइये।
- प्रश्न- नक्सली आन्दोलन का राजनीतिक स्वरूप बताइये।
- प्रश्न- आतंकवाद के रूप में नक्सली आन्दोलन का वर्णन कीजिए।
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- प्रश्न- "प्रतिक्रियावादी आंदोलन" से आप क्या समझते हैं?
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- प्रश्न- 'दलित आन्दोलन' के बारे में अम्बेडकर के विचारों की विश्लेषणात्मक व्याख्या कीजिए।
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- प्रश्न- "पर्यावरणीय आंदोलन" के सामाजिक प्रभावों का उल्लेख कीजिए।
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- प्रश्न- श्रम आन्दोलन के क्या कारण हैं?
- प्रश्न- 'दलित आन्दोलन' से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- पर्यावरणीय आन्दोलनों के सामाजिक महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
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